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शायरी - दिल की गलियों में

दिल की गलियों में सिर्फ इंतजार रह गया तुम आकर चले गए मुझको खबर तक नहीं हुई तुमको भी मोहब्बत है तो मुलाकात कर लेते क्या तुम्हारे दिल में कोई लहर नहीं होती


 मैं आजकल खुद से बात करता हूं क्या मुझसे गलत हुआ क्या सही हुआ पूरा हिसाब करता हूं जो गलत हुआ पहले उसे सही करता हूं


तुम्हारे साथ रहकर निकलती सुबह देखे हैं और ढलती शाम देखे हैं बदल देती है इंसान की जिंदगी आप में कुछ ऐसी मुस्कान देखें है


 तुम्हारी हर गली पर पहरा लगा दूंगा तुम जिधर से भी निकलो मुझे पाओगी अपनी जिंदगी का आज ही इंतकाम कर दूंगा जो मेरा प्यार कबूल करने से इनकार करोगी 

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